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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. न्यूयॉर्क के मेयर पद हेतु निर्वाचन में ‘रैंक चॉइस वोटिंग’ प्रणाली का प्रयोग
2. डेल्टा प्लस, कोरोनावायरस का K417N उत्परिवर्तन
3. सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR)
4. टैक्स इंस्पेक्टर विदाउट बॉर्डर्स (TIWB) कार्यक्रम।
सामान्य अध्ययन-III
1. सीसीआई द्वारा ‘अनुचित व्यापार पद्धति’ के लिए गूगल के खिलाफ जांच
2. आशंका से पहले होगा जलवायु संकट: रिपोर्ट
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. स्वेज़ नहर
2. पिग्मी हॉग
3. सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडाइन्स
सामान्य अध्ययन- II
विषय: भारतीय संवैधानिक योजना की अन्य देशों के साथ तुलना।
न्यूयॉर्क के मेयर पद हेतु निर्वाचन में ‘रैंक चॉइस वोटिंग’ प्रणाली का प्रयोग
संदर्भ:
हाल ही में न्यूयॉर्क शहर में हुए मेयर पद हेतु निर्वाचन में ‘रैंक चयन मतदान’ अर्थात ‘रैंक चॉइस वोटिंग’ (Ranked-Choice Voting) का इस्तेमाल किया गया है।
यह क्या है?
इस मतदान प्रणाली में, मतदाताओं को केवल अपनी पहली पसंद का चयन करने के बजाय, वरीयता के आधार पर उम्मीदवारों को रैंकिंग करने का अवसर मिलता है।
न्यूयॉर्क शहर में मतदाताओं को अपनी पसंद के शीर्ष पांच उम्मीदवारों को रैंक देने का विकल्प दिया गया है- हालांकि मतदाताओं को पांचो उम्मीदवारों को रैंक देना अनिवार्य नहीं है।
इस प्रक्रिया का लाभ एवं तर्क:
उम्मीदवारों की रैंकिंग प्रक्रिया कहीं ज्यादा जटिल है, किंतु इसके समर्थकों का मानना है कि यह निष्पक्ष-प्रणाली है और बहुमत की सामूहिक इच्छा को ज्यादा सटीक रूप से दर्शाती है।
इस प्रणाली की कार्य-विधि:
यदि किसी उम्मीदवार को, ‘पहली पसंद’ के मतों की गणना के पश्चात कुल मतों के ‘50 प्रतिशत से एक मत अधिक’ (50% plus one) हासिल हो जाते हैं, तो वह उम्मीदवार विजयी घोषित कर दिया जाता है और चुनाव समाप्त हो जाता है।
- किंतु, यदि किसी भी उम्मीदवार को ‘50% प्लस वन’ मत हासिल नहीं होते हैं, तो मतगणना का दूसरा दौर शुरू होता है।
- सबसे कम ‘प्रथम वरीयता मत’ हासिल करने वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है, और उसके लिए प्राप्त ‘दूसरी वरीयता’ मतों को अन्य उम्मीदवारों के लिए पुनर्वितरित कर दिया जाता है।
- मतों के पुनर्वितरण की यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है, जब तक किसी उम्मीदवार को ‘50% प्लस वन’ मत हासिल नहीं हो जाते।
इस प्रणाली का विश्व में अन्य किन जगहों पर प्रयोग किया जाता है?
- अमेरिका में, अन्य 20 इलाकों में ‘रैंक चॉइस वोटिंग’ प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।
- ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और माल्टा द्वारा इस प्रणाली का उपयोग 20वीं शताब्दी की शुरुआत से किया जाता रहा है। उत्तरी आयरलैंड, न्यूजीलैंड और स्कॉटलैंड में भी इसे लागू किया गया है।
इसके पक्ष में दिए जा रहे तर्क:
- इस प्रणाली में विजेता को मतों का अधिकाँश भाग प्राप्त होता है। आम रूप से प्रचलित ‘सर्वाधिक मत पाने वाला विजयी’ (most votes wins) प्रणाली में कुल मतों में सर्वाधिक मत हासिल करने वाले व्यक्ति को विजयी घोषित कर दिया जाता है, किंतु इसमें यह जरूरी नहीं होता है कि उसे बहुमत का समर्थन भी हासिल हो।
- अधिक संयत उम्मीदवार: इस प्रणाली में इसकी कम संभावना होती है, कि किसी उग्र उम्मीदवार, जिसका एक सशक्त आधार हो, किंतु उसे व्यापक रूप से ज्यादा पसंद नहीं किया जाता हो, वह भीड़भाड़ वाले चुनाव में सफल हो सके।
- नकारात्मक प्रचार में कमी: इसके लिए तर्क यह है, कि उम्मीदवारों के लिए उन्हें पसंद करने वाले बहुमत की आवश्यकता होती है।
- मतदान के पश्चात मतदाता अच्छा महसूस कर सकते हैं। किसी एक उम्मीदवार को चुनने के मजबूरी के बजाय, मतदाता कम से कम अपनी वास्तविक पसंद के उम्मीदवार के लिए प्रथम वरीयता दे सकते हैं।
इसके विपक्ष में तर्क:
- यह काफी जटिल प्रणाली है, और जटिलताओं से त्रुटियां हो सकती हैं।
- कुछ लोगों का तर्क है, कि यह कम लोकतांत्रिक प्रणाली है क्योंकि इसमें ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के विचार को महत्व नहीं दिया जाता है।
- इससे खरीद-फरोख्त (horse-trading) को बढ़ावा मिल सकता है। ‘रैंक चॉइस वोटिंग’ भले ही मतदान को कम रणनीतिक बना सकती हो, लेकिन यह उम्मीदवारों को एक दूसरे के साथ सौदा करने का द्वार भी खोल सकती है। इसमें उम्मीदवार अपने मतदाताओं को दूसरी वरीयता के रूप में किसको चुनेगे, इस बारे में समझौता कर सकते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
रैंक चॉइस वोटिंग’ के समान, अन्य वैकल्पिक वोटिंग सिस्टम भी प्रचलित हैं- जैसेकि, अनुमोदन वोटिंग (Approval Voting) और आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation)। क्या आप इनके मध्य अंतर जानते हैं? यहां पढ़ें:
प्रीलिम्स लिंक:
- रैंक चॉइस वोटिंग’ प्रणाली के बारे में
- लाभ
- ‘सर्वाधिक मतप्राप्त व्यक्ति की विजय’ (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट) क्या है
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली क्या है?
मेंस लिंक:
रैंक चॉइस वोटिंग’ प्रणाली के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
डेल्टा प्लस, कोरोनावायरस का K417N उत्परिवर्तन
संदर्भ:
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कोरोनावायरस के ‘डेल्टा प्लस’ प्रकार / वैरिएंट (Delta Plus variant) को ‘चिंताजनक वेरिएंट’ (Variant of Concern) के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया है। हाल ही में, कई राज्यों में इस वैरिएंट पता चला है।
‘चिंताजनक वेरिएंट’ या ‘वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न’ क्या होता है?
ये ऐसे वेरिएंट होते हैं, जिनके बारे में निम्नलिखित साक्ष्य दृष्टिगोचर होते हैं:
- प्रसार्यता (transmissibility) में वृद्धि।
- अधिक गंभीर बीमारी, जिसके लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी हो जाता है या जो मृत्यु का कारण बन जाती है।
- पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न हुई एंटीबॉडीज़ द्वारा वायरस को नष्ट करने में महत्वपूर्ण कमी।
- उपचार या टीकों की प्रभावशीलता में कमी, या इसके नैदानिक लक्षणों का सही से पता लगाने में विफलता।
‘डेल्टा प्लस वैरिएंट’ के मामले में, स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तीन लक्षणों- प्रसार्यता में वृद्धि; फेफड़ों की ग्राही कोशिका में अधिक मजबूती से बंधन; और मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ की प्रतिक्रिया क्षमता में कमी- को चिह्नित किया गया है।
वायरस का रूपांतरण या उत्परिवर्तन किस प्रकार और क्यों होता है?
- वायरस के प्रकारों में एक या एक से अधिक ऐसे उत्परिवर्तन (Mutations) होते हैं, जो इस नए रूपांतरित प्रकार को, अन्य मौजूदा वायरस वेरिएंटस से अलग करते हैं।
- दरअसल, वायरस का लक्ष्य एक ऐसे चरण तक पहुंचना होता है जहां वह मनुष्यों के साथ रह सके, क्योंकि उसे जीवित रहने के लिए एक पोषक (Host) की जरूरत होती है।
- वायरल RNA में होने वाली त्रुटियों को उत्परिवर्तन कहा जाता है, और इस प्रकार उत्परिवर्तित वायरस को ‘वेरिएंट’ कहा जाता है। और, एक या इससे अधिक उत्परिवर्तनों के परिणामस्वरूप निर्मित होने वाले ‘वेरिएंट’ परस्पर एक-दूसरे से भिन्न हो सकते हैं।
‘उत्परिवर्तिन’ क्या होता है?
- उत्परिवर्तन अथवा ‘म्युटेशन’ (Mutation) का तात्पर्य, जीनोम अनुक्रमण में होने वाला परिवर्तन होता है।
- SARS-CoV-2 के मामले में, जोकि एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) वायरस है, उत्परिवर्तन का अर्थ, उसके अणु-क्रम संयोजन व्यवस्था में बदलाव होता है।
- आरएनए वायरस में उत्परिवर्तन, प्रायः वायरस द्वारा स्व-प्रतिलिपियाँ (copies of itself) बनाते समय गलती करने के कारण होता है।
अब तक घोषित किए जा चुके ‘वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न’:
‘वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न’ या ‘चिंताजनक वेरिएंट’ के रूप में, B.1.1.7 अथवा अल्फा (Alpha) वैरिएंट सबसे पहले ब्रिटेन में पता चला था, इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में B.1.351 या बीटा वैरिएंट देखा गया और B.1.427 या एप्सिलॉन (Epsilon) वैरिएंट को सबसे पहले अमेरिका में चिह्नित किया गया था।
कुछ समय पहले, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने, सबसे पहले भारत में देखे गए ‘डेल्टा वैरिएंट’ या B.1.617.2 को ‘वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न’ के रूप में चिह्नित किया था।
‘वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न’ पर किस प्रकार नियंत्रण पाया जा सकता है?
- इस पर नियंत्रण पाने के लिए, अधिक संख्या में परीक्षण अथवा ‘वैरिएंट के खिलाफ टीकों और उपचारों की प्रभावशीलता का निर्धारण करने हेतु शोध’ आदि जैसी उचित स्वास्थ्य कार्रवाइयों की आवश्यकता होती है ।
- वैरिएंट के लक्षणों के आधार पर, नई नैदानिक पद्धतियों को विकसित करने तथा टीकों और उपचारों में संशोधन करने जैसे अतिरिक्त उपायों पर विचार किया जा सकता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
अमेरिकी सरकार के अंतर्संस्थान समूह द्वारा ‘वैरिएंट वर्गीकरण’ विकसित किया गया है, जिसमे वैरिएंट की तीन श्रेणियां निर्धारित की गई हैं: ‘वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट’; ‘वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न’ और ‘वैरिएंट ऑफ़ हाई कान्सक्वेन्स’। इनमे अंतर जानने के लिए देखें:
प्रीलिम्स लिंक:
- कोविड-19 क्या है?
- उत्परिवर्तन क्या है?
- mRNA क्या है?
- RT- PCR टेस्ट क्या है?
- जीनोम अनुक्रमण क्या है?
मेंस लिंक:
कोविड- 19 वायरस के उत्परिवर्तन से संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR)
(Information Fusion Centre for Indian Ocean Region)
संदर्भ:
हाल ही में, यूनाइटेड किंगडम द्वारा भारतीय नौसेना के ‘सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र’ (Information Fusion Centre for Indian Ocean Region: IFC-IOR) में एक ‘संपर्क अधिकारी’ (Liaison Officer– LO) नियुक्त किया गया है। IFC-IOR, समुद्री अधिकार-क्षेत्र जागरूकता (Maritime Domain Awareness-MDA) से संबंधित क्षेत्रों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराता है।
IFC-IOR के बारे में:
- सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) को वर्ष 2018 में समुद्री मुद्दों पर हिन्द महासागर क्षेत्र में अवस्थित देशों के साथ समन्वय करने और समुद्री आंकड़ों के क्षेत्रीय भंडार के रूप में कार्य करने हेतु स्थापित किया गया था।
- वर्तमान में, IFC-IOR , विश्व भर में 21 भागीदार देशों और 22 बहु-राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ संबंध स्थापित कर चुका है।
- यह, भारत में हरियाणा राज्य के गुरुग्राम में स्थित है।
‘संपर्क अधिकारी’ की भूमिका एवं कार्य:
- संपर्क अधिकारी, पूर्णकालिक रूप से ‘सूचना संलयन केंद्र’ पर तैनात रहेगा, और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में ‘समुद्री डोमेन जागरूकता’ (MDA) बढ़ाने हेतु सीधे भारतीय सशस्त्र बलों और सहयोगी देशों के सहकर्मी संपर्क अधिकारियों के साथ कार्य करेगा।
- ‘सूचना संलयन केंद्र’ पर कार्य करने हेतु 13 देशों के अंतर्राष्ट्रीय संपर्क अधिकारियों (International Liaison Officers – ILO) को आमंत्रित किया गया है। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जापान और अमेरिका के ‘संपर्क अधिकारी’ पहले ही IFC-IOR के साथ जुड़ चुके हैं, और ब्रिटेन, ‘सूचना संलयन केंद्र’ से जुड़ने वाला पांचवा देश है।
इंस्टा जिज्ञासु:
भारत को मार्च 2020 में ‘हिंद महासागर आयोग’ (Indian Ocean Commission- IOC) में औपचारिक रूप से एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल किया गया था। ‘आईओसी’ के बारे में आप क्या जानते हैं? Read here
प्रीलिम्स लिंक:
- IFC- IOR क्या है?
- क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र (RMIFC) क्या है?
- EMASOH की स्थापना किसने की?
- फारस की खाड़ी तथा होर्मुज़ जलडमरूमध्य की अवस्थिति
मेंस लिंक:
हिंद महासागर आयोग में पर्यवेक्षक की स्थिति भारत को अपने रणनीतिक उद्देश्यों को सुरक्षित करने में किस प्रकार सहायक होगी? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
टैक्स इंस्पेक्टर विदाउट बॉर्डर्स (TIWB) कार्यक्रम
संदर्भ:
हाल ही में, भारत के साथ साझेदारी में भूटान का ‘सीमा-विहीन कर निरीक्षक कार्यक्रम’ अर्थात ‘टैक्स इंस्पेक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ (Tax Inspectors Without Borders- TIWB) कार्यक्रम शुरू किया गया है।
- इस कार्यक्रम की अवधि लगभग 24 महीने होगी।
- इस कार्यक्रम में, अंतरराष्ट्रीय कराधान और हस्तांतरण मूल्य निर्धारण क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
TIWB कार्यक्रम के लाभ:
इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत, यूएनडीपी और TIWB सचिवालय के सहयोग से भूटान के लेखा परीक्षकों को तकनीकी जानकारी तथा आवश्यक कौशल हस्तांतरित करेगा तथा सर्वोत्तम लेखा तौर-तरीके साझा करेगा। इसके अलावा, इस कार्यक्रम का उद्देश्य भूटान को कर प्रशासन को मजबूत करने में सहायता प्रदान करना भी है।
TIWB कार्यक्रम के बारे में:
यह कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (the United Nations Development Programme- UNDP) और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development – OECD) की एक संयुक्त पहल है।
- TIWB पहल का उद्देश्य, एक लक्षित, सद्य अनुक्रिया (रियल-टाइम) ‘करने के साथ सीखें’ (learning by doing) पद्धति के माध्यम से विकासशील देशों में कर-प्रशासन सहित लेखा-परीक्षा / ऑडिट संबंधी आवश्यक जानकारी और कौशल को साझा करके इन देशों के कर-प्रशासनों को मज़बूत करना है।
- TIWB का ध्यान, साधारण ऑडिट और विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय कर मामलों से संबंधित ऑडिट संबधित कौशल क्षमता का निर्माण करने तथा विकासशील देशों के कर-प्रशासनों में सामान्य ऑडिट कौशल क्षमता का विकास करने हेतु विशेषज्ञों को भेजकर सहायता उपलब्ध कराने पर केंद्रित है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप OECD द्वारा विकसित ‘बेटर लाइफ इंडेक्स’ के बारे में जानते हैं? यहां पढ़ें,
प्रीलिम्स लिंक:
- TIWB कार्यक्रम के बारे में
- कार्यान्वयन
- किसके द्वारा विकसित किया गया है?
- महत्व
मेंस लिंक:
‘सीमा-विहीन कर निरीक्षक कार्यक्रम’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
सामान्य अध्ययन- III
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
सीसीआई द्वारा ‘अनुचित व्यापार पद्धति’ के लिए गूगल के खिलाफ जांच
संदर्भ:
हाल ही में, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India-CCI) ने देश में स्मार्ट टेलीविजन ऑपरेटिंग सिस्टम बाजार में कथित ‘प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यापार पद्धति’ अपनाने के लिए गूगल के खिलाफ विस्तृत जांच का आदेश दिया है।
संबधित प्रकरण:
- भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा की गई जांच के अनुसार, भारत में ‘लाइसेंस योग्य स्मार्ट टीवी डिवाइस ऑपरेटिंग सिस्टम’ से संबंधित बाजार में गूगल का ‘दबदबा’ है।
- प्रतिस्पर्धा आयोग के अनुसार, प्रथम दृष्टया, टेलीविजन ऐप डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट (TADA) के तहत स्मार्ट टीवी में गूगल की सभी एप्लिकेशंस का अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन, टेलीविजन उपकरण निर्माताओं पर अनुचित शर्तें लगाने के बराबर है। और, यह ‘प्रतिस्पर्धा अधिनियम’ की धारा 4(2)(a) का उल्लंघन है।
- प्रतिस्पर्धा अधिनियम का अनुच्छेद 4 बाजार में ‘प्रभावी स्थिति’ के दुरुपयोग से संबंधित है।
‘भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग’ के बारे में:
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI), भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है। इसकी स्थापना प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 (Competition Act, 2002) के तहत अधिनियम के प्रशासन, कार्यान्वयन और प्रवर्तन के लिए की गई थी और मार्च 2009 में इसका विधिवत गठन किया गया था। इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
प्रतिस्पर्धा आयोग के कार्य:
- भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग का कार्य, प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले अभ्यासों को समाप्त करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और उसे जारी रखना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा भारतीय बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है।
- आयोग, किसी क़ानून के तहत स्थापित किसी सांविधिक प्राधिकरण से प्राप्त संदर्भ पर प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों पर परामर्श प्रदान करता है, तथा प्रतिस्पर्द्धा की भावना को संपोषित करता है।
- इसके अतिरिक्त, आयोग द्वारा सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने संबंधी कार्य एवं प्रतिस्पर्द्धा के विषयों पर प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है।
प्रतिस्पर्धा अधिनियम:
(The Competition Act)
राघवन समिति की सिफारिशों पर ‘एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार पद्धति अधिनियम’, 1969 (Monopolies and Restrictive Trade Practices Act, 1969) अर्थात MRTP एक्ट को निरस्त कर, इसके स्थान पर ‘प्रतिस्पर्धा अधिनियम’, 2002 लागू किया गया था।
प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 का संशोधित स्वरूप ‘प्रतिस्पर्धा (संशोधन) अधिनियम’, 2007, प्रतिस्पर्धा-रोधी करारों, उद्यमों द्वारा प्रभावी स्थिति के दुरूपयोग का निषेध करता है तथा संयोजनों (अधिग्रहण, नियंत्रण तथा M&A की प्राप्ति) को विनियमित करता है; इन संयोजनों के कारण भारत में प्रतिस्पर्धा पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है अथवा उसके पड़ने की संभावना हो सकती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के तहत ‘राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण’ (NCLT) का भी गठन किया गया था? NCLT के बारे में अधिक जानने हेतु देखें:
प्रीलिम्स लिंक:
- भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के बारे में
- प्रतिस्पर्धा अधिनियम की मुख्य विशेषताएं और इसमें संशोधन।
- NCLT और उसके अधिकार क्षेत्र के बारे में।
मेंस लिंक:
देश में प्रतिस्पर्धा कानून किस प्रकार लागू किया जाता है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
आशंका से पहले होगा जलवायु संकट: रिपोर्ट
संदर्भ:
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान सलाहकारों द्वारा एक ऐतिहासिक मसौदा रिपोर्ट जारी की गई है। यह रिपोर्ट अभी तक आधिकारिक तौर पर जारी नहीं की गई है। हालाँकि, इसे महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने के लिए तैयार किया गया है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- जलवायु परिवर्तन, आगामी दशकों में पृथ्वी पर जीवन को मौलिक रूप से नए आकार में परिवर्तित कर देगा, भले ही मनुष्यों द्वारा पृथ्वी को गर्म करने वाले ‘ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन’ पर नियंत्रण हासिल कर लिया जाए।
- प्रभाव: प्रजातियों का विलुप्त होना, व्यापक रूप से फैलने वाली बीमारियाँ, असहनीय गर्मी, पारिस्थितिकी तंत्रों का नष्ट होना, समुद्र स्तर में वृद्धि से शहरों पर संकट – इन सबके साथ अन्य विनाशकारी जलवायु प्रभावों में तेजी से वृद्धि हो रही है और यह वर्ष 2050 तक दर्दनाक तरीके से स्पष्ट होने लगेंगे।
- चिंताएं: खतरनाक स्थितियों की दहलीज़, पहले से अंदाजा लगाए गए समय से पहले नजदीक आ चुकी है, और दशकों के अनियंत्रित कार्बन प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले भयानक परिणाम बहुत कम समय में अपरिहार्य परिलक्षित होने लगेंगे।
- खाद्य असुरक्षा: वर्ष 2050 तक दसियों लाख लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है, और यदि असमानता को इसी तरह बढ़ने दिया गया तो एक दशक के भीतर 130 मिलियन और लोग अत्यधिक गरीबी का सामना कर सकते हैं।
- वर्ष 2050 में, जलवायु संकट की “फ्रंटलाइन” पर तटीय शहरों में आने वाली बाढ़ से करोड़ों लोगों की जान को खतरा होगा और समुद्रों के बढ़ते स्तर के कारण लगातार आने वाले तूफान और अधिक घातक बन जाएंगे।
- पानी की कमी: शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 350 मिलियन से अधिक लोग, 5 डिग्री तापमान वृद्धि और 410 मिलियन से अधिक लोग, 2.0 डिग्री तापमान वृद्धि के कारण उत्पन्न गंभीर सूखे की वजह से पानी की कमी का सामना करेंगे।
‘संयुक्त राष्ट्र महासचिव के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड’ के बारे में:
संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा ‘सतत विकास पर एक उच्च स्तरीय राजनीतिक फोरम’ की उद्घाटन बैठक के दौरान 24 सितंबर 2013 को ‘वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड’ के निर्माण की घोषणा की गई थी।
- संरचना: इसमें प्राकृतिक, सामाजिक और मानव विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक शामिल होंगे।
- बोर्ड का मुख्य कार्य, संयुक्त राष्ट्र महासचिव और संयुक्त राष्ट्र संगठनों के कार्यकारी प्रमुखों को सतत विकास पर विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (science, technology and innovation – STI) पर परामर्श देना होगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) 1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा गठित किया गया था। इसके कार्य क्या हैं? IPCC द्वारा कौन सी रिपोर्ट जारी की जाती है? Click here
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
स्वेज़ नहर
स्वेज़ नहर (Suez Canal), मिस्र में अवस्थित कृत्रिम समुद्र-स्तरीय जल मार्ग है। यह नहर, स्वेज के स्थलडमरूमध्य (Isthmus) से होकर उत्तर-दक्षिण दिशा में प्रवाहित होती है।
- यह अफ्रीका और एशिया को विभाजित करते हुए भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है।
- यह यूरोप, हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के आसपास के देशों के बीच सबसे छोटा समुद्री मार्ग है।
- यह विश्व का सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाने वाले जहाज-मार्गों में से एक है, और विश्व व्यापार का 12% से अधिक भाग इस मार्ग से होता है।
पिग्मी हॉग
(Pygmy Hogs)
संदर्भ:
हाल ही में असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान में आठ पिग्मी हॉग (Pygmy Hogs) छोड़े गए हैं।
- इन्हें ‘पिग्मी हॉग कंजर्वेशन प्रोग्राम’ (Pygmy Hog Conservation Programme- PHCP) के तहत जंगल में छोड़ा गया है।
- PHCP के द्वारा वर्ष 2025 तक मानस राष्ट्रीय उद्यान में 60 पिग्मी हॉग छोड़ने की योजना बनाई गई है।
- असम का मानस राष्ट्रीय उद्यान, इस प्रजाति का मुख्य निवास है, और यहाँ पर इसकी मूल आबादी अभी भी जीवित है, हालांकि इनकी संख्या में काफी गिरावट आई है।
PHCP क्या है?
PHCP, यूनाईटेड किंगडम के जर्सी (Jersey) में स्थित ड्यूरेल वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन ट्रस्ट (Durrell Wildlife Conservation Trust), असम वन विभाग, वाइल्ड पिग स्पेशलिस्ट ग्रुप, तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बीच एक भागीदारी कार्यक्रम है। इसे आरण्यक और इकोसिस्टम्स इंडिया के सहयोग से कार्यन्वित किया जा रहा है।
पिग्मी हॉग के बारे में:
- ये विश्व के सबसे दुर्लभ और सबसे छोटे जंगली सूअर हैं।
- पिग्मी हॉग, हिमालय की दक्षिणी तलहटी में घने जलोढ़ घास के मैदानों के मूल निवासी है।
- ये भारत के लिए स्थानिक हैं और उत्तर-पश्चिमी असम में मानस राष्ट्रीय उद्यान के आसपास बहुत कम स्थानों तक ही सीमित हैं।
- जंगलों में इनकी आबादी मात्र लगभग 250 के आसपास बची है और यह विश्व के सबसे संकटग्रस्त स्तनधारियों में से एक है।
- वर्तमान में यह प्रजाति IUCN लाल सूची में ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ (Critically Endangered) के रूप में सूचीबद्ध है।
- भारत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत पिग्मी हॉग को अनुसूची-I प्रजाति के रूप में शामिल किया गया है।
सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडाइन्स
(Saint Vincent and The Grenadines)
यह कैरेबियन क्षेत्र में अवस्थित एक द्वीप देश है।
यह दक्षिण पूर्व विंडवार्ड द्वीपसमूह में लेस्सर एंटिल्स द्वीप चाप में एक बहु द्वीपीय एंग्लो-कैरेबियन देश है, जो कैरिबियन सागर में पूर्वी सीमा के दक्षिणी छोर पर वेस्टइंडीज में स्थित है। इसके नजदीक ही कैरिबियन सागर, अटलांटिक महासागर से मिलता है।
चर्चा का कारण:
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा भारत और ‘सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडाइन्स’ के बीच करों के संबंध में सूचना के आदान-प्रदान और संग्रह में सहायता के लिए समझौते को मंजूरी दी गई है।
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