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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का स्थानांतरण
2. जम्मू और कश्मीर में परिसीमन
3. ड्राफ्ट सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक 2021
4. निष्ठा: शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम
सामान्य अध्ययन-III
1. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ
2. ‘गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च’
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: 21 जून
2. ‘जान है तो जहान है’ जागरूकता अभियान
3. ब्लैक सॉफ्टशेल कछुआ
सामान्य अध्ययन- II
विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।
उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का स्थानांतरण
(Shifting of jurisdiction of a High Court)
संदर्भ:
लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा अपने ‘कानूनी क्षेत्राधिकार’ (legal jurisdiction) को केरल उच्च न्यायालय से कर्नाटक उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है।
पृष्ठभूमि:
- लक्षद्वीप के नए प्रशासक प्रफुल खोड़ा पटेल द्वारा हाल ही में लिए गए फैसलों के खिलाफ केरल उच्च न्यायालय के समक्ष कई मुकदमे दायर किए जाने के बाद, प्रशासन द्वारा इस प्रस्ताव का सूत्रपात किया गया था।
- लक्षद्वीप प्रशासक के इन निर्णयों में, कोविड-उपयुक्त व्यवहार के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं को संशोधित करना, “गुंडा अधिनियम” की शुरूआत और सड़कों को चौड़ा करने के लिए मछुआरों की झोपड़ियों को ध्वस्त करना आदि शामिल थे।
उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को स्थानांतरित करने संबंधी प्रक्रिया:
किसी उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को केवल संसद द्वारा पारित अधिनियम के माध्यम से ही स्थानांतरित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 241 में कहा गया है कि ‘संसद विधि द्वारा, किसी संघ राज्यक्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय का गठन कर सकती है या ऐसे संघ राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय को, इस संविधान के सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए, उच्च न्यायालय घोषित कर सकती है।’
- इसी अनुच्छेद के उपबंध 4 में उल्लेख है कि, ‘इस अनुच्छेद की किसी बात से किसी राज्य के उच्च न्यायालय की अधिकारिता का किसी संघ राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग पर विस्तार करने या उससे अपवर्जन करने की संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं होगा।
आगे की चुनौतियां:
वर्तमान में, लक्षद्वीप, केरल उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
इसके अलावा, मलयालम, केरल और लक्षद्वीप, दोनों में बोली और लिखी जाने वाली भाषा है।
- उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्थानांतरित करने से लक्षद्वीप की पूरी न्यायिक व्यवस्था परिवर्तित हो जाएगी।
- इससे भाषा के संबंध टूटेगा।
- साथ ही, केरल उच्च न्यायालय, लक्षद्वीप से मात्र 400 किलोमीटर की दूरी पर है जबकि कर्नाटक उच्च न्यायालय की दूरी 1,000 किलोमीटर से अधिक है और कोई सीधा संपर्क मार्ग भी नहीं है।
- इससे राजकोष पर अतिरिक्त भार पड़ेगा, क्योंकि वर्तमान में विचाराधीन सभी मामलों की फिर से सुनवाई करनी होगी।
इंस्टा जिज्ञासु:
उच्चतम न्यायालय के लिय मूल, अपीलीय और सलाहकार क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं। इसके बारे में यहाँ और पढ़ें:
प्रीलिम्स लिंक:
- अनुच्छेद 241 और इसके तहत उप-प्रावधान
- उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार
- भारत में संघ शासित प्रदेशों का विधिक अधिकार क्षेत्र
- उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति।
मेंस लिंक:
लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा अपने विधिक क्षेत्राधिकार को केरल उच्च न्यायालय से कर्नाटक उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा गया है। इस निर्णय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन
(J&K Delimitation Commission)
संदर्भ:
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए, केंद्र शासित प्रदेश में सीटों का परिसीमन करना आवश्यक होगा।
परिसीमन की आवश्यकता:
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल 6 मार्च को, केंद्रशासित प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों को फिर से निर्धारित करने के लिए जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।
ज्ञात हो कि, ‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम’, 2019 द्वारा राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था।
‘परिसीमन’ क्या होता है?
‘परिसीमन’ (Delimitation) का शाब्दिक अर्थ, ‘विधायी निकाय वाले किसी राज्य में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारण प्रक्रिया’ होता है।
‘परिसीमन प्रक्रिया’ का निष्पादन:
- परिसीमन प्रक्रिया, एक उच्च अधिकार प्राप्त आयोग द्वारा संपन्न की जाती है। इस आयोग को औपचारिक रूप से परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) या सीमा आयोग (Boundary Commission) कहा जाता है।
- परिसीमन आयोग के आदेशों को ‘क़ानून के समान’ शक्तियां प्राप्त होती है, और इन्हें किसी भी अदालत के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।
आयोग की संरचना:
‘परिसीमन आयोग अधिनियम’, 2002 के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त परिसीमन आयोग में तीन सदस्य होते हैं: जिनमे अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, तथा पदेन सदस्य के रूप में मुख्य निर्वाचन आयुक्त अथवा इनके द्वारा नामित निर्वाचन आयुक्त एवं राज्य निर्वाचन आयुक्त शामिल होते है।
संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत, प्रत्येक जनगणना के पश्चात् भारत की संसद द्वारा एक ‘परिसीमन अधिनियम’ क़ानून बनाया जाता है।
- अनुच्छेद 170 के तहत, प्रत्येक जनगणना के बाद, परिसीमन अधिनियम के अनुसार राज्यों को भी क्षेत्रीय निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि अगस्त 2019 तक, जम्मू-कश्मीर में लोकसभा सीटों का परिसीमन भारत के संविधान द्वारा नियमित होता था, किंतु, राज्य की विधानसभा सीटों का परिसीमन ‘जम्मू और कश्मीर संविधान’ और ‘जम्मू और कश्मीर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम’, 1957 द्वारा नियमित होता था?
प्रीलिम्स लिंक:
- पूर्ववर्ती परिसीमन आयोग- शक्तियाँ और कार्य
- आयोग की संरचना
- आयोग का गठन किसके द्वारा किया जाता है?
- आयोग के अंतिम आदेशों में परिवर्तन की अनुमति?
- परिसीमन आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
मेंस लिंक:
निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किस प्रकार और क्यों किया जाता है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
मसौदा सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) विधेयक 2021
(The draft Cinematograph (Amendment) Bill 2021)
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा ‘सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) विधेयक 2021’ का मसौदा (The draft Cinematograph (Amendment) Bill 2021) जारी किया गया है। इसके माध्यम से ‘सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952’ में संशोधन किया जाएगा।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
- प्रमाणन पुनरीक्षण (Revision of certification): इस प्रावधान के अंतर्गत केंद्र सरकार के लिए ‘पुनरीक्षण करने की शक्ति’ (Revisionary Powers) प्रदान की गई है और केंद्र सरकार को ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ (Central Board of Film Certification- CBFC) द्वारा अनुमोदित फिल्मों की ‘पुन: जांच’ करने में सक्षम बनाया गया है।
- आयु-आधारित प्रमाणीकरण (Age-based certification): विधेयक में आयु-आधारित वर्गीकरण और श्रेणीकरण का प्रावधान लागू करने का प्रस्ताव किया गया है। इसके तहत, फिल्मो के लिए मौजूदा श्रेणियों (U, U/A और A) को दोबारा आयु-आधारित समूहों (U /A 7+, U/A 13+ और U/A 16+) में विभाजित करने का प्रस्ताव है।
- पायरेसी के खिलाफ प्रावधान (Provision against piracy): वर्तमान में, फिल्म पायरेसी को रोकने के लिए कोई सक्षम प्रावधान नहीं हैं। विधेयक में पायरेसी की समस्या पर लगाम लगाने के लिए प्रावधान किए गये हैं, जिनका उल्लंघन करने पर कारावास और जुर्माने की सजा भुगतनी होगी।
- अपरिवर्तनशील प्रमाण पत्र (Eternal certificate): इसके अंतर्गत, फिल्मों को सदा के लिए प्रमाणित करने का प्रस्ताव है। वर्तमान में CBFC द्वारा जारी प्रमाण पत्र केवल 10 वर्षों के लिए वैध होते है।
संबंधित चिंताएं:
- पुनर्प्रमाणन के लिए आदेश देने की केंद्र की शक्ति, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा संचालित मौजूदा प्रक्रिया के तहत उल्लिखित प्रत्यक्ष सरकारी सेंसरशिप (Government Censorship) में एक अतिरिक्त परत जोड़ सकती है।
- फिल्म प्रमाणन के सबंध में उच्चतम न्यायालय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है, कि सरकार को सेंसरशिप की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है, और जब एकबार ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ किसी फिल्म को प्रमाणित कर देता है, उसके बाद सरकार इस विषय पर शक्तिहीन हो जाती है। विधेयक में प्रस्तावित प्रावधान शीर्ष अदालत के इस विचार के विपरीत हैं।
- अक्सर, किसी फिल्म की प्रमाणन प्रक्रिया के बाद किंतु उसकी रिलीज से ठीक पहले विभिन्न समूहों या व्यक्तियों द्वारा आपत्ति जताई जाती है। प्रस्तावित नए नियमों के लागू होने से, फिल्मों को यादृच्छिक आपत्तियों के आधार पर पुन: प्रमाणन के लिए लंबे समय तक रोका जा सकता है, भले ही इनके लिए CBFC प्रमाणित कर चुका हो।
इस विषय पर सरकार का पक्ष:
सरकार, जिन फिल्मों पर उसके लिए शिकायतें प्राप्त होती हैं, उन फिल्मों के लिए सुपर-सेंसर के रूप में कार्य करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करने का औचित्य साबित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 में उल्लखित ‘उचित प्रतिबंधों’ का हवाला देती है- भले ही ‘सिनेमैटोग्राफ अधिनियम’ को क्रियान्वित करने वाले अधिकार प्राप्त आधिकारिक निकाय ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ (CBFC) के अनुसार इन फिल्मों में प्रतिबंध लगाए जाने योग्य सामग्री नहीं पाई गई हो।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं? कि सरकार द्वारा एक अध्यादेश के माध्यम से ‘फ़िल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण’ (Film Certificate Appellate Tribunal- FCAT) को समाप्त कर दिया गया था। इस अधिकरण का मुख्य कार्य केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के फैसलों से असंतुष्ट प्रमाणपत्र आवेदकों द्वारा की गई अपीलों पर सुनवाई करना था।
प्रीलिम्स लिंक:
- CBFC के बारे में
- संरचना
- सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के बारे में
- नवीनतम संशोधन
मेंस लिंक:
सिनेमैटोग्राफ अधिनियम में प्रस्तावित अधिनियमों से संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
निष्ठा: शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम
(NISHTHA: Teachers’ Training Programme)
संदर्भ:
एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) के शिक्षकों एवं प्रधानाचार्यों हेतु ‘निष्ठा क्षमता निर्माण कार्यक्रम’ के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय और NCERT एक संयुक्त मिशन पर साथ कार्य किया जा रहा है।
निष्ठा (NISHTHA) क्या है?
निष्ठा (NISHTHA-National initiative for School Heads’ and Teachers’ Holistic Advancement Program), “एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण के माध्यम से स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार” हेतु क्षमता निर्माण कार्यक्रम का उद्देश्य प्रारंभिक स्तर पर शिक्षण परिणामों में सुधार करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान है। इसे ‘एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम’ के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
- यह विश्व में अपनी तरह का सबसे बड़ा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम है।
- इसे वर्ष 2019-20 में समग्र शिक्षा अभियान के तहत केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शुरू किया गया था।
उद्देश्य:
इस कार्यक्रम का उद्देश्य, छात्रों में आलोचनात्मक सोच विकसित करने तथा इसे प्रोत्साहित करने हेतु शिक्षकों को प्रेरित करना और प्रारंभिक स्तर पर सभी शिक्षकों और स्कूल प्राधानाचार्य की क्षमता का निर्माण करना है।
कार्यान्वयन:
प्रशिक्षण कार्यक्रम, राज्य और संघ शासित प्रदेशों द्वारा चिन्हित किये गए 33120 की रिसोर्स पर्सन्स (Resource Persons-KRP) और स्टेट रिसोर्स पर्सन्स (State Resource Persons-SRP) द्वारा सीधे तौर आयोजित किया जाएगा, और इनके लिए ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training-NCERT) तथा ‘राष्ट्रीय प्रशिक्षण शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान’ (National Institute of Educational Planning and Administration-NIEPA) द्वारा चिन्हित किए गए 120 ‘नेशनल रिसोर्स पर्सन्स’ द्वारा प्रशिक्षित किया जाएगा।
अपेक्षित परिणाम:
- छात्रों के सीखने के परिणामों में सुधार।
- एक सक्षम और समृद्ध समावेशी कक्षा परिवेश का निर्माण
- शिक्षकों को प्रथम स्तर के परामर्शदाताओं के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि वे छात्रों की सामाजिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के प्रति सतर्क और उत्तरदायी हो सकें।
- शिक्षकों के लिए कला (Art) को अध्यापन-कला के रूप में उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा, जिससे छात्रों की रचनात्मकता वृद्धि होगी।
- शिक्षकों को, छात्रों के समग्र विकास हेतु उनके व्यक्तिगत-सामाजिक गुणों को विकसित करने और मजबूत करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
- स्वस्थ और सुरक्षित स्कूल परिवेश का निर्माण।
- शिक्षण-अधिगम और मूल्यांकन में आईसीटी का एकीकरण।
- सीखने की क्षमता के विकास पर केंद्रित तनाव मुक्त स्कूल आधारित मूल्यांकन विकसित करना।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा 2020 में आंध्र प्रदेश के 1,200 प्रमुख ज्ञानवर्धक व्यक्तियों (रिसोर्स पर्सन) के लिए पहला ऑनलाइन निष्ठा- शिक्षकों एवं विद्यालय प्रमुखों की समग्र उन्नति के लिए एक राष्ट्रीय पहल (NISHTHA) कार्यक्रम आरम्भ किया गया था?
प्रीलिम्स लिंक:
- समग्र शिक्षा कार्यक्रम के बारे में
- निष्ठा के बारे में
- EMRS के बारे में
स्रोत: पीआईबी
सामान्य अध्ययन- III
विषय: विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)
(Chief of Defence Staff)
संदर्भ:
थिएटर कमांड से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में ‘थिएटर कमांड’ की संरचना से संबंधित विषयों पर मतभेदों को दूर किया जाएगा।
पृष्ठभूमि:
सशस्त्र बलों (सेना, वायु सेना और नौसेना) की युद्धक संरचना को थिएटर कमांड में पुनर्गठित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य तीनों बलों के संसाधनों को एक कमांडर के अधीन करना है। यह कमांडर अपनी थिएटर कमांड के अधीन सभी कार्यों के लिए जिम्मेदार होगा।
वर्तमान में, तीनों सशस्त्र बलों के 17 कमांड कार्यरत हैं, जिनमें थल सेना और वायु सेना, प्रत्येक के अधीन सात कमांड हैं और नौसेना के अधीन तीन कमांड हैं।
थिएटर कमांड के बारे में अधिक जानने के लिए यहाँ पढ़ें।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के बारे में:
वर्ष 1999 में गठित कारगिल समीक्षा समिति द्वारा सुझाए गए अनुसार, ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (CDS), सरकार के एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार (single-point military adviser) होंगे।
- इनके लिए ‘चार सितारा जनरल’ (Four-star General) का दर्जा प्राप्त होगा।
- CDS, ‘चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी’ के स्थायी अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं। इस कमेटी में तीनो सशत्र- बालों के प्रमुख सदस्य के रूप में शामिल होते हैं।
- ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ का मुख्य कार्य, भारतीय सेना के तीनो सशत्र-बलो के मध्य अधिक से अधिक परिचालन तालमेल को बढ़ावा देना और अंतर-सेवा संघर्ष को न्यूनतम करना होगा।
आवश्यक शर्तेँ:
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) पद पर नियुक्त व्यक्ति, सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी पद को धारण करने का पात्र नहीं होगा।
- CDS के पद से सेवानिवृत्ति के 5 वर्षों बाद तक बिना पूर्व अनुमोदन के किसी भी निजी रोज़गार की अनुमति भी नहीं होगी।
भूमिकाएं और कार्य:
- CDS, सरकार को ‘सिंगल-पॉइंट सैन्य सलाह’ प्रदान करेगा तथा सशस्त्र बलों के मध्य योजना बनाने, खरीद करने और रसद के संबंध में तालमेल स्थापित करेगा।
- यह थिएटर कमांड के गठन के माध्यम से स्थल-वायु-समुद्र कार्यवाहियों का समेकन सुनिश्चित करेगा।
- CDS, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में ‘परमाणु कमान प्राधिकरण’ के सैन्य सलाहकार के रूप में भी कार्य करेगा, साथ ही अंतरिक्ष और साइबर स्पेस जैसे नए युद्ध क्षेत्रों को संभालने के लिए त्रि-सेवा संगठनों की कमान का नेतृत्व भी करेगा।
- वह, रक्षा मंत्री के प्रधान सैन्य सलाहकार और चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (Chiefs of Staff Committee – COSC) के स्थायी अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करेगा।
- CDS, ‘रक्षा अधिग्रहण परिषद’ और ‘रक्षा योजना समिति’ के सदस्य भी होगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के साथ ही ‘सैन्य मामलों के विभाग’ (Department of Military Affairs- DoMA) को रक्षा मंत्रालय के अधीन पांचवें विभाग के रूप में गठित किया गया है?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ के बारे में
- भूमिकाएं और कार्य
- शक्तियां
- थिएटर कमांड क्या हैं?
मेंस लिंक:
थिएटर कमांड्स की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
‘गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च’
(Gain of Function Research)
संदर्भ:
हाल ही में, कोविड -19 महामारी की उत्पत्ति के बारे में जारी बहस के दौरान ‘गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च’ (Gain of Function Research) शब्द सामने आया है।
‘गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च’ क्या है?
‘गेन ऑफ फंक्शन’, वायरस में उत्परिवर्तन का कारण बनने वाली परिस्थितियों में, सूक्ष्मजीवों के वृद्धिमान प्रजनन पर केंद्रित अनुसंधान का एक क्षेत्र है।
- इन प्रयोगों को ‘गेन ऑफ फंक्शन’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनमें रोगाणुओं (Pathogens) के साथ इस तरह से हेरफेर किया जाता है, कि इनके लिए किसी कार्य (function), जैसेकि प्रसार में वृद्धि, में अथवा इसके माध्यम से लाभ प्राप्त होता है।
- इस तरह के प्रयोग, वैज्ञानिकों को उभरती संक्रामक बीमारियों की बेहतर भविष्यवाणी करने और टीके और चिकित्सीय उपचार विकसित करने का अवसर प्रदान करते हैं।
क्रिया-पद्धति:
- इन प्रयोगों में, जानबूझकर किसी जीव का प्रयोगशाला में परिवर्तन, जीन-परिवर्तन, या किसी रोगाणु की प्रसरण क्षमता (transmissibility), प्रचंडता और प्रतिरक्षाजनत्व / इम्युनोजेनेसिटी (Immunogenicity) का अध्ययन करने हेतु इसमें उत्परिवर्तन (mutation) कराना शामिल होता है।
- इन प्रक्रियाओं को, वायरस की जेनेटिक इंजीनियरिंग करके और इनके लिए विभिन्न माध्यमों में वृद्धि करने का अवसर देकर पूरा किया जाता है। इस तकनीक को सीरियल पैसेज (serial passage) कहा जाता है।
इस प्रकार के अनुसंधानों से संबंधित मुद्दे:
- ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ अनुसंधान में ‘हेरफेर’ (manipulation) का उपयोग किया जाता है, जिसके माध्यम से कुछ रोगाणु सूक्ष्मजीव अधिक घातक या अधिक संक्रामक बन जाते हैं।
- इसके अलावा एक ‘लॉस-ऑफ-फंक्शन’ (loss-of-function) अनुसंधान भी होता है, जो ‘निष्क्रिय उत्परिवर्तन’ (inactivating mutations) से संबंधित है। इस प्रकार के प्रयोगों के परिणामस्वरूप रोगाणु, ‘निष्क्रिय’ (no function) हो जाते हैं अथवा अपना मुख्य कार्य करना कम कर देते हैं।
- गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान में, कथित तौर पर जैव सुरक्षा संबंधी जोखिम अंतर्निहित होते हैं और इसी वजह से, इसके लिए ‘चिंताजनक दोहरा उपयोग अनुसंधान’ (dual-use research of concern- DURC) भी कहा जाता है।
सीरियल पैसेजिंग (Serial passaging) में, विभिन्न परिस्थितियों में रोगाणुओं को वृद्दि करने का अवसर देकर, उनमे होने वाले परिवर्तनों का अवलोकन किया जाता है।
कोविड -19 महामारी के संदर्भ में प्रासंगिकता:
- हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में दिए गए तर्क के अनुसार, कोविड -19 महामारी के वायरस को ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ में गलती से लीक होने की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है। इस रिपोर्ट के बाद ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ अनुसंधान चर्चा के केंद्र में आ गया है।
- हालांकि, वैज्ञानिकों ने पहले वायरस के ‘जेनेटिकली इंजीनियर’ होने की संभावना से इनकार किया था, किंतु, हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, चीनी शहर में जारी ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ रिसर्च के दौरान ‘सीरियल पैसेजिंग’ से इस वायरस का विकास होने की संभवना हो सकती है।
भारत में इसे किस प्रकार विनियमित किया जाता है?
जेनेटिकली इंजीनियर्ड जीवों या कोशिकाओं, खतरनाक सूक्ष्मजीवों और उत्पादों से संबंधित सभी गतिविधियों को “खतरनाक सूक्ष्मजीवों / आनुवंशिक रूप से संशाधित जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण नियम, 1989” के अनुसार विनियमित किया जाता है।
- वर्ष 2020 में, जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा ‘जैव सुरक्षा प्रयोगशाला’ नामक रोकथाम सुविधाओं की स्थापना हेतु दिशानिर्देश जारी किए गए।
- इस अधिसूचना में जैव खतरों और जैव सुरक्षा के स्तर पर परिचालन दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिनका सूक्ष्मजीवों से संबंधित अनुसंधान, विकास और प्रबंधन में संलग्न सभी संस्थानों को पालन करना अनिवार्य किया गया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
बायोमेडिकल रिसर्च में संलग्न प्रयोगशालाओं को बीएसएल-1 से लेकर बीएसएल-4 तक के चार स्तरों में वर्गीकृत किया गया है। विवरण के लिए देखें:
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: 21 जून
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपने 69वें सत्र के दौरान 11 दिसंबर 2014 को एक प्रस्ताव पारित करके 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया गया था।
- अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस-2021 के लिए थीम: ‘कल्याण हेतु योग’ (Yoga for well-being)।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी अपने सदस्य राष्ट्रों से ‘योग का अभ्यास’ करने के लिए कहा है और इसे 2018-30 की शारीरिक गतिविधियों संबंधी अपनी वैश्विक कार्य योजना में शामिल किया है।
‘जान है तो जहान है’ जागरूकता अभियान
- इस अभियान की शुरुआत, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा की गई है।
- यह देश के ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में कोरोना टीकाकरण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए और कुछ निहित स्वार्थों द्वारा मौजूदा टीकाकरण अभियान के संबंध में फैलाई जा रही अफवाहों और आशंकाओं को “कुचलने और रोकने” के लिए एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान है।
ब्लैक सॉफ्टशेल कछुआ
(Black Softshell Turtle)
यह मीठे पानी में पाई जाने वाली कछुओं की एक प्रजाति है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा वर्ष 2021 में इस प्रजाति को ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ के रूप में सूचीबद्ध किया था।
- इसे भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
- असम में ब्रह्मपुत्र नदी की जल वाहिकाओं में देखे जाने से पूर्व, ब्लैक सॉफ्टशेल कछुए को वन्य-रूप से विलुप्त’ माना जाता था, और यह केवल पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में मंदिरों के तालाबों में ही पाया जाता था।
चर्चा का कारण:
हाल ही में, असम में हयग्रीव माधव मंदिर समिति ने हरित-क्षेत्र में काम करने वाले दो गैर-सरकारी संगठनों (NGO), असम राज्य चिड़ियाघर सह बॉटनिकल गार्डन तथा कामरूप जिला प्रशासन के साथ, मीठे पानी के दुर्लभ ब्लैक सॉफ्टशेल कछुए (Nilssonia nigricans) के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
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