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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-I
1. झंडा सत्याग्रह
सामान्य अध्ययन-II
1. न्यायाधीशों का सुनवाई से इंकार
2. चुनाव परिणामों को किस प्रकार चुनौती दी जाती है?
सामान्य अध्ययन-III
1. आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण
2. ‘चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स’ रिपोर्ट
3. चक्रवाती तूफानों के लिए अवरोध: ओडिशा में समुद्री तट पर मैंग्रोव वन लगाने की योजना
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. चिकित्सा उपकरणों का भारतीय प्रमाणन प्लस योजना
2. अदन की खाड़ी
3. ‘एकीकृत थिएटर कमांड्स’
सामान्य अध्ययन- I
विषय: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान।
झंडा सत्याग्रह
(Flag Satyagraha)
संदर्भ:
संस्कृति मंत्रालय द्वारा 18 जून को मध्य प्रदेश के जबलपुर में ‘ध्वज सत्याग्रह’ / ‘झंडा सत्याग्रह’ मानने हेतु एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
‘झंडा सत्याग्रह’ क्या है?
- स्वतंत्रता सेनानियों के झंडा सत्याग्रह आंदोलन के ब्रिटिश सरकार की चूलें हिला दी थीं, और इसने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक संजीवनी का कार्य किया था।
- झंडा सत्याग्रह का आयोजन वर्ष 1923 में जबलपुर और नागपुर में किया गया था।
- जबलपुर में झंडा फहराने की खबर देश भर में आग की तरह फैल गई और इसके बाद देश भर में कई जगहों पर झंडा फहराया गया।
महत्व:
यह शांतिपूर्ण सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत एक अभियान था, जिसका उद्देश्य राष्ट्रवादी झंडे को फहराने और नागरिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने संबंधी कानूनों की अवहेलना करते हुए राष्ट्रवादी ध्वज फहराने की स्वतंत्रता और अधिकार का प्रदर्शन और ब्रिटिश शासन की वैधता को चुनौती देना था।
परिणाम:
- झंडा फहराने के अधिकार की मांग करने वाले राष्ट्रवादी प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी, विशेषकर महात्मा गांधी की हालिया गिरफ्तारी से पूरे भारत में आक्रोश फैल गया।
- सरदार वल्लभभाई पटेल, जमनालाल बजाज, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, डॉ राजेंद्र प्रसाद और विनोबा भावे जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने विद्रोह का आहवान किया और विभिन्न क्षेत्रों से हजारों लोग सविनय अवज्ञा में भाग लेने हेतु नागपुर और मध्य प्रांत के विभिन्न हिस्सों में पहुंचे।
- अंत में, अंग्रेजों द्वारा सरदार पटेल और अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ एक समझौते पर बातचीत की गई, जिसमें गिरफ्तार किए गए सभी लोगों की रिहाई, तथा प्रदर्शनकारियों को बिना अवरोध जुलूस निकालने की अनुमति दी गई।
इंस्टा जिज्ञासु:
पिंगली वेंकैया एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के अभिकल्पक (Designer) थे। वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज, इनके द्वारा तैयार किये गए प्रारूप पर आधारित है। भारतीय ध्वज के बारे में यहाँ और पढ़ें,
प्रीलिम्स लिंक:
- वेंकैया द्वारा डिज़ाइन किया गया झंडा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा आधिकारिक तौर पर कब स्वीकार किया गया था?
- संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को कब अपनाया गया
- भारतीय धवज संहिता- अवलोकन
- भारत में राष्ट्रीय ध्वज को कौन निर्मित करता है?
- भारत में झंडा सत्याग्रह के बारे में
मेंस लिंक:
भारतीय धवज संहिता, 2002 के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
सामान्य अध्ययन- II
विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।
न्यायाधीशों का सुनवाई से इंकार
(Recusal of Judges)
संदर्भ:
हाल ही में, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई कथित हिंसा में मारे गए दो भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवारों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।
पृष्ठभूमि:
याचिका में आरोप लगाया गया है, कि राज्य में चुनाव परिणाम आने के बाद “प्रतिशोधी” सत्तारूढ़ दल द्वारा पश्चिम बंगाल में निर्दोष लोगों की हत्याएं की गई थी।
‘न्यायिक निरर्हता’ अथवा ‘सुनवाई से इंकार’ का तात्पर्य:
किसी पीठासीन न्यायायिक अधिकारी अथवा प्रशासनिक अधिकारी द्वारा हितों के टकराव के कारण किसी न्यायिक सुनवाई अथवा आधिकारिक कार्रवाई में भागीदारी से इंकार करने को न्यायिक निरर्हता (Judicial disqualification), ‘सुनवाई से इंकार’ करना अथवा ‘रिक्युजल’ (Recusal) कहा जाता है।
‘सुनवाई से इंकार’ करने हेतु सामान्य आधार:
- किसी तर्कशील निष्पक्ष पर्यवेक्षक को लगता है कि, न्यायाधीश किसी एक पक्षकार के प्रति सद्भाव रखता है, अथवा अन्य पक्षकार के प्रति द्वेषपूर्ण है, अथवा न्यायाधीश किसी के प्रति पक्षपाती हो सकता है।
- न्यायाधीश का मामले में व्यक्तिगत हित है अथवा वह मामले में व्यक्तिगत हित रखने वाले किसी व्यक्ति से संबंध रखता है।
- न्यायाधीश की पृष्ठभूमि अथवा अनुभव, जैसे कि न्यायाधीश के वकील के रूप में किये गए पूर्व कार्य।
- मामले से संबंधित तथ्यों अथवा पक्षकारों से व्यक्तिगत तौर पर परिचय।
- वकीलों या गैर-वकीलों के साथ एक पक्षीय संवाद।
- न्यायाधीशों के अधिनिर्णय, टिप्पणियां अथवा आचरण।
इस संबंध में क़ानून:
न्यायाधीशों द्वारा ‘सुनवाई से इंकार’ करने संबंधी कोई निश्चित नियम निर्धारित नहीं हैं।
हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा पद की शपथ लेने के समय, न्याय करने हेतु ‘बिना किसी डर या पक्षपात, लगाव या वैमनस्य के’ अपने कर्तव्यों को निभाने का वादा किया जाता है ।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी:
जस्टिस जे चेलमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015) मामले में अपनी राय दी थी कि ’जहां भी किसी न्यायाधीश के आर्थिक हित प्रतीत होते है, वहां पक्षपात संबंधी किसी ‘वास्तविक खतरे’ अथवा ‘तर्कपूर्ण संदेह’ की जांच की आवश्यकता नहीं है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘सुनवाई से अलग होने’ के विषय के संबंध में, शीर्ष अदालत ने 2015 के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission– NJAC) मामले में फैसले सुनाते हुए कहा था कि न्यायाधीशों द्वारा ‘सुनवाई से इंकार’ करने पर इसके लिए कारणों को स्पष्ट शब्दों में बताना आवश्यक है। आप NJAC के बारे में क्या जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- न्यायिक निरर्हता के लिए आधार।
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को शपथ कौन दिलाता है?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 127 और 128 किससे संबंधित हैं?
मेंस लिंक:
‘सुनवाई से इंकार’ (Recusal), सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए नैतिकता की एक चयनात्मक आवश्यकता बन गया है। चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ।
चुनाव परिणामों को किस प्रकार चुनौती दी जाती है?
संदर्भ:
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र के विधानसभा चुनाव परिणाम को चुनौती देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक चुनावी याचिका दायर की है। ज्ञातव्य है, कि ममता बनर्जी ने नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और वे इसमें पराजित हो गयी थीं।
संबंधित प्रकरण:
ममता बनर्जी ने याचिका मांग की है, कि निर्वाचन अधिकारी द्वारा संचालित मतगणना प्रक्रिया में भ्रष्ट आचरण और विसंगतियों के आधार पर, सुवेंधु अधिकारी के चुनाव को अमान्य घोषित किया जाए।
‘चुनावी याचिका’ क्या होती है?
चुनावों के परिणाम आने के पश्चात, किसी मतदाता या उम्मीदवार को चुनाव में बेईमानी / कदाचार होने की आशंका होने पर, चुनावी याचिका (Election Petition) उसके लिए उपलब्ध एकमात्र वैधानिक उपाय होती है।
- चुनाव याचिका, निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय में दायर की जाती है।
- इस प्रकार की याचिका को चुनाव परिणाम घोषित होने की तारीख से 45 दिनों के भीतर दायर करना आवश्यक है; इस अवधि के पश्चात् अदालतों द्वारा इन पर सुनवाई नहीं की जाती है।
- जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951 के तहत, उच्च न्यायालय को छह महीने के भीतर चुनावी याचिका से संबंधित मुकदमे को समाप्त करने का प्रयास करने का सुझाव दिया गया है। आमतौर पर इस प्रकार के मुकद्दमो पर काफी लंबे समय तक, कई बार वर्षों तक चलती रहती है।
जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 100 के तहत चुनाव याचिका निम्नलिखित आधारों पर दायर की जा सकती है:
- जनप्रतिनिधि अधिनियम (RP Act) की धारा 123 में भ्रष्ट आचरण के संबंध में एक विस्तृत सूची निर्धारित की गई है, जिसमें रिश्वतखोरी, बल प्रयोग या जबरदस्ती, वोट देने की अपील करना या धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के आधार पर मतदान में भाग नहीं लेना आदि है।
- जीतने वाले उम्मीदवार के नामांकन की गलत तरीके से स्वीकृति या किसी के नामांकन को गलत तरीके से खारिज किया जाना।
- मतगणना प्रक्रिया में बेईमानी: इसमें गलत तरीके से किसी मत को स्वीकार करना, किसी मत को अस्वीकार करना या खारिज करना, या किसी अमान्य मत को स्वीकार करने आदि को शामिल किया गया है।
- संविधान अथवा जनप्रतिनिधि अधिनियम या इसके प्रावधानों के तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेशों का पालन न करना।
अदालत में कदाचार का तर्क सही साबित होने पर आगे की कार्रवाई:
चुनाव याचिका पर याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला होने पर, फिर से चुनाव कराया जा सकता है या अदालत एक नए विजेता की घोषणा कर सकती है।
प्रसिद्ध उदाहरण:
- चुनाव याचिका से संबंधित कई उदाहरण मौजूद हैं, इनमे से सबसे प्रसिद्ध 1975 का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला है। इस फैसले में चार साल पहले हुए रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव में इंदिरा गांधी की जीत को भ्रष्ट आचरण के आधार पर रद्द कर दिया था।
- एक अन्य हाई-प्रोफाइल मामला 2008 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव से संबंधित है। इस चुनाव में कांग्रेस नेता सी पी जोशी की एक वोट से हार हो गई थी।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा अपने फैसले में, मतदान के अधिकार को क़ानून के तहत प्राप्त अधिकार बताया था? इसके बारे में और अधिक पढ़ें,
प्रारम्भिक लिंक:
- जनप्रतिनिधि अधिनियम (RP Act) के प्रमुख प्रावधान।
- रिटर्निंग ऑफिसर की भूमिकाएं और शक्तियां
- चुनाव आयोग के आदेशों के खिलाफ अपील
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामान्य अध्ययन- III
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण
(Corporatization of ordnance factory board)
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ (Ordnance Factory Board – OFB) के निगमीकरण की योजना को मंजूरी प्रदान कर दी गई है।
आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB)
यह आयुध कारखानों और संबंधित संस्थानों के लिए एक अम्ब्रेला निकाय है, और वर्तमान में रक्षा मंत्रालय (MoD) का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
- भारत का पहला आयुध कारखाना वर्ष 1712 में डच कंपनी द्वारा, गनपाउडर फैक्ट्री, पश्चिम बंगाल के रूप में स्थापित किया गया था।
- आयुध निर्माणी बोर्ड, उत्पादों के विभिन्न क्षेत्रों के लिए जिम्मेदार होंगे जैसेकि ‘गोला-बारूद और विस्फोटक समूह’, गोला-बारूद का उत्पादन करेंगे और ‘वाहन समूह’, डिफेंस मोबिलिटी और लड़ाकू वाहनों के उत्पादन में संलग्न होगा।
प्रस्तावित परिवर्तन:
योजना के अनुसार, देश भर में 41 कारखानों को नई संस्थाओं के अंतर्गत समूहीकृत किया जाएगा, जोकि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) या भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) जैसे किसी अन्य मौजूदा रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (Defence Public Sector Undertaking- DPSU) की तरह कार्य करेंगी। ये नव गठित संस्थाएँ सरकार के 100% स्वामित्व में होंगी।
पुनर्गठन की आवश्यकता:
आयुध कारखानों पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार:
- आयुध कारखानों में उत्पादन, निर्धारित लक्ष्य से कम होता जा रहा है, और वर्ष 2017-18 के दौरान विभिन्न आयुध कारखानों ने निर्धारित लक्ष्य की केवल 49% वस्तुओं का उत्पादन या।
- सेना की गोला-बारूद के लिए कुछ मुख्य मांगों का एक महत्वपूर्ण भाग 31 मार्च 2018 तक बकाया रहा, जिससे सेना की परिचालन तैयारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता था।
इस प्रकार, उत्पादन में अक्षमता और देरी को ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ (OFB) के ओवरहाल के पीछे एक प्रमुख कारण माना जा सकता है।
नई संरचना का महत्व:
- इस पुनर्गठन का उद्देश्य आयुध कारखानों को उत्पादक और लाभदायक परिसंपत्तियों में बदलना, उत्पाद श्रृंखला में उनकी विशेषज्ञता को गहन बनाना, प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देना और गुणवत्ता एवं लागत-दक्षता में सुधार करना है।
- यह पुनर्गठन, अक्षम आपूर्ति श्रृंखलाओं को समाप्त करके ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ के मौजूदा तंत्र में विभिन्न कमियों को दूर करने में मदद करेगा और इन कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बनने और बाजार में नए अवसरों का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
- इससे इन कंपनियों को स्वायत्तता के साथ-साथ जवाबदेही और दक्षता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
निगमीकरण से संबंधित चिंताएं/कमियां:
- निगमीकरण, अंततः निजीकरण की ओर ले जाएगा।
- नई कॉर्पोरेट संस्थाएँ रक्षा उत्पादों के प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार के माहौल से बचने में सक्षम नहीं होंगी, जिसका एक प्रमुख कारण अस्थिर मांग और आपूर्ति की गतिशीलता है।
- पुनर्गठन के परिणामस्वरूप अधिक स्वायत्तता और निगम पर कम सरकारी नियंत्रण होगा, साथ ही रोज़गार कम होने का डर भी रहेगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
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स्रोत: द हिंदू
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
‘चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स’ रिपोर्ट
संदर्भ:
हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा ‘चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स’ (Children and Digital Dumpsites) नामक नई रिपोर्ट जारी की गई थी।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ई-कचरा डंपिंग स्थलों पर काम करने वाले 18 मिलियन से अधिक बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है।
- उच्च आय वाले देश अपने ई-कचरे को प्रत्येक वर्ष प्रसंस्करण के लिये मध्यम या निम्न आय वाले देशों में डंप कर देते हैं और इससे इन बच्चों और किशोरों को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम का सामना करना पड़ता है।
संबंधित चिंताएं:
- ई-कचरे (e-waste) में 1,000 से अधिक कीमती धातुएँ और अन्य पदार्थ जैसे सोना, तांबा, सीसा, पारा, कैडमियम, क्रोमियम, पॉलीब्रोमिनेटेड बाइफिनाइल और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन आदि शामिल होते हैं।
- इस ई-कचरे का प्रसंस्करण निम्न आय वाले देशों में किया जाता है, और इन देशों में उचित सुरक्षा विनियमन नहीं होता है, जिससे यह प्रक्रिया और भी खतरनाक बन जाती है।
- इन डंपिंग स्थलों पर कार्य करने के लिए, बच्चों को उनके छोटे और कुशल हाथों के कारण विशेष रूप से पसंद किया जाता है।
- गर्भवती माताओं सहित कई महिलाएं भी इन जगहों पर काम करती हैं। ई-कचरा का प्रसंस्करण से ये महिलायें और इनके अजन्मे बच्चे भी इन विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आते है, जिससे समय-पूर्व जन्म और मृत जन्म (still birth) की घटनाएँ हो सकती हैं।
- इन जगहों पर काम करने का खतरनाक प्रभाव, ई-कचरा डंपसाइट के आसपास रहने वाले परिवारों और समुदायों पर भी देखा जा सकता है।
विश्व भर में उत्पादित ई-कचरे की मात्रा:
- विश्व भर में उत्पादित ई-कचरे की मात्रा में तेजी से वृद्धि हो रही है। वर्ष 2019 में लगभग 6 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ था।
- इस ई-कचरे का केवल 17.4% औपचारिक रूप से पुनर्नवीनीकरण किया गया और, इसके बाकी हिस्से को अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा अवैध प्रसंस्करण के लिये निम्न या मध्यम आय वाले देशों में डंप कर दिया गया था।
- स्मार्टफोन और कंप्यूटर की संख्या में वृद्धि के कारण आने वाले वर्षों में ई-कचरे के मात्रा में और वृद्धि होने की संभावना है।
‘ई-कचरा’ क्या होता है?
ई-कचरा (e-waste), इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट (Electronic-Waste) का संक्षिप्त रूप है और इस शब्द का प्रयोग पुराने या जो प्रयोग से बाहर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का वर्णन करने के लिये किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के घटक, उपभोज्य वस्तुएं और कल-पुर्जे शामिल होते हैं।
भारत में ई-कचरे का प्रबंधन:
ई-कचरे के प्रबंधन हेतु भारत में वर्ष 2011 से क़ानून लागू है, जिसके तहत केवल अधिकृत विघटनकर्ताओं और पुनर्चक्रणकर्ताओं द्वारा ही ई-कचरा एकत्र किए जाने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा वर्ष 2017 में, ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 (e-waste (Management) Rules, 2016) अधिनियमित किए गए थे।
भारत में ई-कचरा उत्पादन:
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत में वर्ष 2019-20 के दौरान 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न हुआ, जबकि वर्ष 2017-18 में इसकी मात्रा 7 लाख थी। इसके लिए, ई-कचरा निराकरण क्षमता वर्ष 2017-18 में 7.82 लाख टन थी, और इसमें कोई वृद्धि नहीं की गई है।
इंस्टा जिज्ञासु:
- क्या आप जानते हैं कि घरेलू और व्यावसायिक इकाइयों से कचरे को अलग करने, प्रसंस्करण और निपटान के लिए भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है? Click here
- ई-कचरे के निर्यात को ‘खतरनाक अपशिष्ट की सीमा-पार आवाजाही के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन’ के तहत नियंत्रित किया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ई-कचरा क्या है?
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016
- बेसल कन्वेंशन के बारे में
- ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित अन्य कन्वेंशन
मेंस लिंक:
भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
चक्रवाती तूफानों के लिए अवरोध: ओडिशा में समुद्री तट पर मैंग्रोव वन लगाने की योजना
संदर्भ:
हाल ही में, ओडिशा सरकार द्वारा समुद्र तटीय क्षेत्र में मैंग्रोव और कैसुरीना का वृक्षारोपण करने के लिए प्रस्ताव रखा गया है। हाल ही में आये चक्रवात यास के दौरान मैंग्रोव वनों ने भितरकणिका राष्ट्रीय उद्यान में चक्रवाती हवाओं के प्रति एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य किया था।
पृष्ठभूमि:
ओडिशा, अपनी विशिष्ट भू-जलवायु अवस्थिति के कारण चक्रवात, बाढ़, ओलावृष्टि, सूखे जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति काफी सुभेद्य रहता है।
‘मैंग्रोव’ क्या हैं?
- मैंग्रोव (Mangroves), विश्व भर में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों, मुख्यतः 30 डिग्री उत्तर और 30 डिग्री दक्षिणी अंक्षाशों के मध्य पाए जाते हैं। मैंग्रोव वनों का सर्वाधिक विस्तार, भूमध्य रेखा के दोनों और 5 डिग्री अक्षांशो के मध्य पाया जाता है।
- मैंग्रोव, तटीय लवणीय जल या खारे पानी (Brackish Water) में उगने वाले झाड़ी नुमा या छोटे आकार के वृक्ष होते हैं।
- मैंग्रोव वनों के वृक्ष लवण-सहनीय (salt-tolerant) होते हैं, जिन्हें लवणमृदोद्भिद् या हेलोफाइट्स (Halophytes) भी कहा जाता है, और ये कठोर तटीय परिस्थितियों के लिए अनुकूलित होते हैं।
- इनमें, खारे जल में डूबे रहने और लहरों से निपटने के लिए एक जटिल लवण निस्पंदन प्रणाली और जटिल जड़-तंत्र होता है।
- इनकी जड़ों को श्वसन-सूल या न्यूमेटोफोर (Pneumatophores) कहा जाता है। ये जड़ें इन वृक्षों को अवायवीय मृदा में सांस लेने में मदद करती हैं।
- मैंग्रोव वनों के बीज, वृक्षों से गिरने से पहले ही स्वतः अंकुरित हो जाते हैं- इस प्रक्रिया को
- पेड़ गिरने से पहले पेड़ों में ही अंकुरित हो जाते हैं – इसे प्रजनन की जरायुजता या विविपैरिटी (Viviparity) विधा कहा जाता है।
मैंग्रोव का महत्व:
मैंग्रोव वृक्षों की जड़ें जल प्रवाह पर नियंत्रण करने में सहायक होती हैं और इन क्षेत्रों में तलछट के जमाव को बढ़ाती हैं। इसके अलावा ये तटीय किनारों को मजबूत करती हैं और मछलियों के लिए प्रजनन स्थल उपलब्ध कराती हैं।
- मैंग्रोव वन मानसूनी ज्वारीय बाढ़ को नियंत्रित करते हैं और तटीय निम्न क्षेत्रों में जल-भराव को कम करते हैं।
- ये तटीय मृदा अपरदन को रोकते हैं।
- ये सुनामी, तूफान और बाढ़ से तटीय भूमि की सुरक्षा करते हैं।
- मैंग्रोव वन, पोषक तत्वों के प्राकृतिक पुनर्चक्रण को तीव्र करते हैं।
- मैंग्रोव अनेक वनस्पतियों, उभयचरों और वन्य जीवों के लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध करते हैं।
- विभिन्न प्रकार की मछलियों के प्रजनन, अंडे सेने, पालन-पोषण के लिए एक सुरक्षित और अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं।
- स्थानीय लोगों को लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, औषधीय पौधे और खाद्य वनस्पति की आपूर्ति करते हैं।
- ये स्थानीय समुदायों को रोजगार के कई अवसर प्रदान करते हैं और उनकी आजीविका में वृद्धि करते हैं।
अतिरिक्त जानकारी:
- विश्व पर्यावरण दिवस पर, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सुंदरबन में 50 मिलियन मैंग्रोव वृक्ष लगाने की घोषणा की है।
- चक्रवात अम्फान के दौरान हुई वृक्षों के नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतु एक मैंग्रोव वृक्षारोपण महा अभियान चलाया गया था।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य (CWLS) में पाए जाने वाले गोदावरी मैंग्रोव को भारत में दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन माना जाता है? विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन कौन सा है?
प्रीलिम्स लिंक:
- मैंग्रोव के बारे में
- मैंग्रोव वनों की वृद्धि के लिए आवश्यक परिस्थितयां
- विशेषताएं
- भारत और विश्व में मैंग्रोव
- मैंग्रोव के लाभ
मेंस लिंक:
मैंग्रोव के महत्व की विवेचना कीजिए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
चिकित्सा उपकरणों का भारतीय प्रमाणन प्लस योजना
(Indian Certification of Medical Devices (ICMED) Plus Scheme)
- इस योजना के लिए ‘भारतीय गुणवत्ता परिषद्’ (Quality Council of India – QCI) द्वारा शुरू किया गया है।
- यह वर्ष 2016 में चिकित्सा उपकरणों के प्रमाणन के लिए शुरू की गई ICMED योजना का उन्नत संस्करण है।
- ICMED 13485 प्लस योजना को गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली के घटकों और उत्पाद संबंधी गुणवत्ता सत्यापन प्रक्रियाओं को एकीकृत करने के लिए डिजाइन किया गया है।
अदन की खाड़ी
(Gulf Of Aden)
हाल ही में, अदन की खाड़ी में पहला भारतीय नौसेना-यूरोपीय संघ नौसैनिक बल (EUNAVFOR) युद्धाभ्यास आयोजित किया गया था।
- अदन की खाड़ी, जिसे बरबेरा की खाड़ी के रूप में भी जाना जाता है, उत्तर में यमन, पूर्व में अरब सागर, पश्चिम में जिबूती और दक्षिण में गार्डाफुई चैनल, सोकोट्रा (यमन) और सोमालिया से घिरी हुई गहरे पानी की एक खाड़ी है।
- उत्तर-पश्चिम में, यह बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य के माध्यम से लाल सागर से जुडती है। इसके पूर्व में अरब सागर है और पश्चिम में, यह जिबूती में तदजौरा की खाड़ी में मिल जाती है।
‘एकीकृत थिएटर कमांड्स’
(Integrated Theatre Commands- ITC)
‘एकीकृत थिएटर कमांड्स’ (ITC) के तहत रणनीतिक और सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण भौगोलिक क्षेत्रों के लिए, एक कमांडर के अधीन, तीनों सेनाओं की एकीकृत कमांड की परिकल्पना की गयी है।
- सैन्य सेवाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) की ‘संयुक्त कमान’ को एक ‘थिएटर कमांड’ या ‘एकीकृत सैन्य कमांड’ कहा जाता है, जो युद्ध के मौके पर तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए बेहद उपयोगी होती है।
- इस तरह के सैन्य बल का कमांडर को, थल सेना, भारतीय वायु सेना और नौसेना के सभी संसाधनों का अपने विवेकानुसार निर्बाध प्रभावकारिता के साथ उपयोग करने की शक्ति होगी।
- एकीकृत थिएटर कमांडर, किसी एक सेवा के प्रति जवाबदेह नहीं होगा।
- तीनों सेनाओं के एकीकरण और समेकन से संसाधनों की द्विरावृत्ति (Duplication) से बचा जा सकेगा। किसी सेवा के अंतर्गत उपलब्ध संसाधन अन्य सेवाओं के लिए भी उपलब्ध होंगे।
- शेकेतकर समिति (Shekatkar Committee) द्वारा भी आंतरिक और बाह्य खतरों से निपटने के लिये तीन एकीकृत थिएटर कमांड- उत्तरी कमांड, चीन सीमा के लिए, पश्चिमी कमांड, पाकिस्तान सीमा के लिए, और दक्षिणी कमांड, समुद्री कार्रवाहियों के लिए- गठित करने के संदर्भ में सिफारिश की गई थी।
चर्चा का कारण:
एकीकृत त्रि-सेवा थिएटर कमांड के गठन पर व्यापक परामर्श हेतु सेवाओं और संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई है।
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